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________________ खण्डा जोयरणा ४३७ अभियोग देवकी दो श्रेणी (उत्तर-दक्षिण) की है एव ३४ वैताढ्य पर चार-चार श्रेणी है । कुल ४४४४=१३६ श्रेणिये है। ८ विजय द्वार :-कुल ३४ विजय है जहाँ चक्रवर्ती ६ खण्ड का एकछत्र राज्य कर सकते है । ३२ विजय तो महाविदेह क्षेत्र के है। नीचे अनुसार 'पूर्व विदेह सोता नदी पश्चिम विदेह सीतोदा नदो उत्तर किनारे ८ दक्षिण कि. ८ उत्तर कि.८ दक्षिण कि. ८ कच्छ विजय वच्छ विजय पद्म विजय विप्रा विजय सुकच्छ , सुवच्छ , सुपा । सूविप्रा , महाकच्छ, महावच्छ , महापद्म , महाविप्रा , कच्छवती" वच्छवतो, पद्मवती, विप्रावती, आव्रता , रमा , सवा , वग्गु , मङ्गला , रमक , कुमुदा , सुवग्गु , पुरकला , रमणीक , निलीका ,, गन्धीला , पुष्कलावती, मङ्गलावती , सलीला ॥ गधीलावती, प्रत्येक विजय १६५९२ योजन २ कला दक्षिणेत्तर लम्बी और २२२।। योजन पूर्व-पश्चिम मे चौडी है । ये ३२ तथा १ भरत क्षेत्र, १ ऐरावत क्षेत्र एव ३४ चक्रवर्ती हो सकते है। इन ३४ विजयो मे ३४ दीर्घ वैताढ्य पर्वत, ३४ तमस गुफा ३४ खन्ड प्रभा गुफा, ३४ राजधानी, ३४ नगरी, ३४ कृत मालो देव ३४ नट माली देव ३४ ऋषभ कूट ३४ गङ्गा नदी ३४ सिंधु नदी ये सव शाश्वत है। ६ द्रह द्वार :-वर्पधर पर्वतो पर छः-छ पाच देव कुरु में और पाच उत्तर कुरु मे है। द्रह के नाम किस पर्वत लम्बाई चौडाई गहराई ( कुण्ड ) पर है योजन योजन देवी कमल
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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