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________________ ४३६ 16 Mm जैनागम स्तोक संग्रह वक्षार १६४४-६४ ५०० विद्युतप्रभा गजदता पर मालवन्ता सुमानस गधमाल ॥ ७ ॥ मेरु के नन्दन वन में ४६७ भद्रशाला देव कुरु में ८८ यो. ८ यो. ४ यो. उत्तर कुरु में चक्रवर्ती के विजय में ३४ ५२५ गजदंता के २ और नन्दन वन का १ कूट और १ हजार योजन ऊँचा, १ हजार योजन मूल में और ५ सो योजन का विस्तार समझना। ७६ कूट (१६ वक्षार, ८ उत्तर कुरु ३४ वैताढ्य) पर जिन गृह है। शेष कुटो पर देव देवी के महल है। ४ वन मे चार (१६ ) मेरु चलो पर १, जम्बू वृक्षपर १, शाल्मली वृक्षपर १ जिनगृह ! कुल ६५ शाश्वत सिद्धायतन है। ६ तीर्थ द्वार :-३४ विजय (३२ विदेह का, १ भरत, १ ऐरावर्त) में से प्रत्येक तीन-तीन लौकिक तीर्थ है । मगध, वरदाम व प्रभास । जब चक्रवर्ती खण्ड साधने को जाते है तब यहाँ रोक दिये जाते है । यहाँ अट्ठम करते है । तीथंकरों के जन्माभिषेक के लिये भी इन तीर्थो का जल और औषधि देव लाते है। ७ श्रेणी द्वार :-विद्याधरो की तथा देवों की १३६ श्रेणी है । वैताढ्य पर १० योजन ऊँचे विद्याधरो की २ श्रेणी है । दक्षिण श्रेणी में ५० और उत्तर श्रेणी में ६० नगर है। यहाँ से १० योजन ऊंचे पर
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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