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________________ व्यवहार समकित के ६७ बोल ४०७ शासन मे क्रियावान् होवे (४) शासन में चतुर होवे । शासन के प्रत्येक कार्य को ऐसी चतुराई (बुद्धि) से करे कि जिससे वह कार्य निर्विघ्नता से समाप्त हो जावे (५) शासन मे चतुर्विध संघ की भक्ति तथा वहुसत्कार करने वाला होवे। इन पाच भूषणो से शासन की शोभा होती है। ७, दूषण पांच-(१) शङ्का-जिन वचन में शङ्का करे (२) कंखा --अन्य मतो का आडम्बर देख कर उनकी वाञ्छा करे (३) वितिगिच्छा-धर्म की करणी के फल मे सन्देह करे इसका फल होवेगा या नही ? वर्तमान मे तो कुछ फल नजर नही आता आदि इस प्रकार का सन्देह करे (४) पर पाखण्डी से नित्य परिचय रक्खे (५) परपाखण्डियो की प्रशसा करे । एव समकित के पांच दूषणो को अवश्य दूर करना चाहिये। ८, प्रभावना ८ भेद-(१) जिस काल मे जितने सूत्र होते है, उन्हे गुरु गम से जाने वह शासन का प्रभावक बनता है। (२) बड़े आडम्बर से धर्म-कथा व्याख्यान आदि द्वारा शासन के ज्ञान की प्रभावना करे । (३) महान विकट तपश्चर्या करके शासन की प्रभावना करे। (४) तीन काल अथवा तीन मत का ज्ञाता होवे । (५) तर्क, वितर्क, हेतु, वाद युक्ति, न्याय तथा विद्यादि बल से वादियो को शास्त्रार्थ में पराजय करके शासन की प्रभावना करे। ( ६ ) पुरुषार्थी पुरुष दीक्षा लेकर शासन की प्रभावना करे। (७) कविता करने को शक्ति होवे तो कविता करके शासन की प्रभावना करे। (८) ब्रह्मचर्य आदि कोई वडा व्रत लेना होवे तो बहुत से मनुष्यो की सभा मे लेवे, कारण कि इससे लोको को शासन पर श्रद्धा अथवा व्रतादि लेने की रुचि बढ़े अथवा दुर्बल स्वधर्मी भाइयो को सहायता करे। यह भी एक प्रकार की प्रभावना है परन्तु आजकल चौमासे में अभक्ष्य वस्तु की अथवा लड्डू आदि की प्रभावना करते हैं । दीर्घ
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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