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________________ ३७६ जैनागम स्तोक संग्रह ५ रिद्धि तथा विकुर्वणा द्वार भविय द्रव्य देव में जिन्हे वैक्रिय उत्पन्न होवे वह, नर देव को त होती ही है, धर्म देव में से जिन्हे होवे वो और भाव देव के तो होती ही है एव ये चारों वैक्रिय रूप करे तो जघन्य १, २, ३, उत्कृष्ट सख्यात रूप करे, शक्ति तो असख्याता रूप करने की है । परन्तु करे नही देवाधिदेव की शक्ति अनन्त है परन्तु करे नही । ६ चवन द्वार १ भवि द्रव्य देव चव कर देवता होवे २ नर देव चव कर नरक जावे ३ धर्म देव चव कर वैमानिक में तथा मोक्ष मे जावे ४ देवाधिदेव मोक्ष में जावे ५ भाव देव चवकर पृथ्वी अप, वनस्पति बादर मे और गर्भज मनुष्य तिर्यच मे जावे । ७ संचिठणा द्वार सचिठणा अर्थात् क्या देव का देवपने रहे तो कितने काल तक रह सकता है ? भवि द्रव्य देव की सचिठरणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट ३ पल्योपम की । नर देव की जघन्य सातसौ वर्ष की उत्कृष्ट ८४ लक्ष पूर्व की । धर्म देव की परिणाम आश्री एक समय, प्रवर्तन श्री जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट देण उणी पूर्व क्रोड़ की । देवाविदेव की जघन्य ७२ वर्ष की उत्कृष्ट ८४ लक्ष पूर्व की । भाव देव की ज० दश हजार वर्ष की, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की । अन्तर द्वार भवि द्रव्य देव मे अन्तर पडे तो जघन्य दश हजार वर्ष और अन्त० अधिक । उत्कृष्ट अनन्त काल का । नर देव मे जघन्य एक सागर जाजेरा उ० अर्ध पुद्गल परावर्तन में देश न्यून | धर्मदेव में
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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