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जैनागम स्तोक संग्रह होता है। (२८) उत्तराषाढ़ा न के चार तारे होते है, इसका बैठे हुए सिह समान आकार है। इस समय पके हुए वीली फल खाकर जाने से सर्वसाधन सहित कार्य सिद्धि होती है । यह नक्षत्र दीक्षित करने योग्य है। __ऊपर वताये हुए अट्ठावीस नक्षत्रों में से पाँचवॉ, वारहवाँ, तेरहवॉ, पन्द्रहवाँ, सोलहवॉ, अट्ठारहवॉ, बीसवॉ, एकवीसवाँ, छब्बीसवाँ और सत्तावीसवॉ एव दश नक्षत्रो से अमुक नक्षत्रा चन्द्र के साथ जोड़ कर गमन करते होवे व उस दिन गुरुवार होवे तब उस समय मिथ्याभिमान दूर करके विनय भक्तिपूर्वक गुरुवन्दन करे व आज्ञा प्राप्त करके शास्त्राध्ययन करने में तथा वाचन लेने मे प्रवृत्त होवे । ऐसा करने से सत्वर ज्ञान वृद्धि होती है, परन्तु याद रखना चाहिये कि छः वार छोड कर गुरुवार लेवे । २ अष्टमी, २ चउदश, पूर्णिमा, अमावस्या और २ एकम ये सर्व तिथि छोड़ कर शेष अन्य तिथियो में अच्छा चौघड़िया देख कर सूर्य-गमन में प्रारम्भ करे ।
विशेष मे गणिपद (आचार्य), वाचक पद (उपाध्पाय) अथवा बडी दीक्षा देने के शुभ प्रसंग मे २ चोथ २ छटु, २ अष्टमी, २ नवमी, २ वारस, २चउदश, पूर्णिमा तथा अमावस्या आदि चौदह तिथियाँ निषेध है। इनके सिवाय की अन्य तिथि अथवा वार नक्षत्र योग्य है। ऐसे काल के लिये गणी विधि प्रकरण ग्रन्थ का न्याय है । अष्टमी को प्रारम्भ करने पर पढाने वाला मरे अथवा वियोग पडे । अमावस्या के दिन प्रारम्भ करने पर दोनो मरे और एकम के दिन प्रारम्भ करने से विद्या की नास्ति होवे । ऐसा समझ कर तिथि वार नक्षत्र चौघड़िया देख कर गुरु सम्मुख ज्ञान लेना चाहिये । यह श्रेय का कारण है।