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________________ नक्षत्र और विदेश गमन ३७१ कर चलने से विरुद्ध फल की प्राप्ति होती है, परन्तु शास्त्र अभ्यासी के लिए श्रेष्ठ है । (१९) उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के भी दो तारे होते है और आकार भी पलङ्ग जैसा होता है इस समय कडा नामक वनस्पति की फलो का शाक खाकर चलने पर सहज ही क्लेश मिलता है। यह नक्षत्र दीक्षा लायक है । (२०) हस्त नक्षत्र के पाँच तारे है । इसका आकार हाथ के पजे समान है सिगोडे खाकर उत्तर दिशा सिवाय अन्य तरफ चलने से अनेक लाभ है व नये शास्त्र अभ्यासियो को अत्यन्त शक्ति देने वाला है । (२१) चित्रा नक्षत्र का एक ही तारा है खिले हुवे फूल जैसा उसका आकार है। दो पहर दिन चढने बाद मूग की दाल खाकर दक्षिण दिशा सिवाय अन्य दिशाओ मे जाने पर लाभ होता है व ज्ञान वृद्धि होती है (२२) स्वाति नक्षत्र का एक तारा है इसका आकार नागफनी समान होता है आम खाकर जाने पर लाभ लेकर कुशल क्षेम पूर्वक जल्दो घर लौट आ सकते है। (२३) विशाखा नक्षत्र के पाँच तारे होते है जिसका आकार घोड़े की लगाम (दामणी) जैसा है इस योग पर अलसी फल खाकर जाने से विकट काम सिद्ध हो जाते है । (२४) अनुराधा नक्षत्र के चार तारे है। इसका आकार एकावली हार समान होता है। चावल मिश्री खाकर जाने से दूर देश यात्रा करने पर भी कार्य सिद्धि कठिनता से होती है। (२५) जेष्ठा न० के तीन तारे है। इनका आकार हाथी के दाँत जैसा होता है। इस समय कलथी का शाक अथवा कोल कुट (बोर कुट) खाकर चलने से शीघ्र मरण होता है । (२६) मूल न० के ग्यारह तारे है। इसका वीछे जैसा आकार है। मूला के पत्रा का शाक खाकर जाने से कार्य सिद्धि मे बहुत समय लगता है। इस नक्षत्र को वीछीडा भी कहते है । ज्ञान अभ्यासियो के लिये तो यह अच्छा है । २७ पूर्वाषाढ न० के चार तारे है । हाथी के पॉव समान इसका आकार है। इस समय खीर ऑवला खाकर जाने से क्लेश, कुसम्प व अशान्ति । प्राप्त होती है, परन्तु शास्त्र अभ्यासियो को अच्छी शक्ति देने वाला
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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