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________________ जीव धडा मनुष्य के ३०३ भद: १५ कर्मभूमि के मनुष्य, ३० अकर्मभूमि के और ५६ अन्तर द्वीप के एवं १०१ क्षेत्र के गर्भज मनुष्य का अपर्याप्ता व पर्याप्ता एवं २०२ और १०१ क्षेत्र के समूछिम मनुष्य (चौदह स्थानोत्पन्न) का अपर्याप्ता। इस प्रकार मनुष्य के ३०३ भेद हुए। देवता के भेद : १० असुर कुमारादिक १५ परमाधर्मी एव २५ भेद भवनपति के । १६ प्रकार के पिशाचादि देव १० प्रकार के जुभिका एवं २६ भेद वाणव्यंतर के । ज्योतिषी देव के १० भेद-५ चर ज्योतिषी और ५ अचर (स्थिर) ज्योतिपी । ३ किल्विषी १२ देवलोक ९ लोकान्तिक, ६ वेयक (ग्रीवेक) ५ अनुत्तर विमान । इन ६६ (१०+ १५+१+१०+१०+३+१२+६+६+५) जाति के देवो का अपर्याप्ता व पर्याप्ता एव देवता के ११८ भेद जानना ।। १ नारकी के चौदह भेद, २ तिर्य च के अडतालीस, ३ मनुष्य के तीन सौ तीन, और ४ देवता के एक सौ अठाणु । द्वार - १ जीव, २ गति, ३ इन्द्रिय, ४ काय, ५ योग, ६ वेद, ७ कषाय ८ लेश्या, ह सम्यक्त्व, १० ज्ञान, ११ दर्शन, १२ सयम, १३ उपयोग १४ आहार, १५ भाषक, १६ परित, १७ पर्याप्ता १८ सूक्ष्म, १६ सन्नी २० भव्य और २१ चरम । ( जीवधडा की सारिणी अगले पृष्ठ से देखिए )
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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