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________________ ३४४ ५१० तिर्यचणी गति के एकांत संयोगी में ५११ एक संस्थान प्र० शरीरी बादर में ५१२ तियंच " ५१३ एक संस्थान मिथ्यात्वी में ५१४ मध्य जीवो का स्पर्श करने वाले एकांत छद्म चक्षु ५१५ तिर्यचणी गति के बादर में ५१६ ५१७ " ܙܕ " 35 "" " घ्रा० 11 स्त्री गति प्र० " " शरीरी में ५१८ पंचेन्द्रिय में एकात छद्म० अनेक भववाले ५१६ एक संस्थानी मे ५३६ घ्राणेन्द्रिय में ५४० एकांत छद्म० बादर मे ५४१ त्रस जीवो में ५४२ तीन शरीरी एकांत छद्म ५४३ एकांत असयम में ५४४ प्र० श० एकांत छद्म ५४५ सम्य० ति० अलद्धिया में ५४६ एकांत छद्म० अनेक भाववालों में ५४७ स्त्री गति प्र० श० मिथ्या० ५४५ एकान्त छद्मस्थ में १२ १४ १४ १४ १४ १२ १४ १२ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ 20 20 200 १४ १२ १४ · ४८ २६ ४८ ३८ २२ ३८ २४ ३४ २० ३४ २४ जैनागम स्तोक संग्रह ३८ २६ ४२ ४३ ४२ ३० ४८ ४४ ३८ २८८ २७३ २८८ २७३ २८० ३०३ २८८ २७३ २८८ २७३ ३०३ २८८ १६२ १६८ १६२ १८८ २६० १६२ १६० १६८ १६६ १६८ १६८ १८ १६८ १६८ १६८ ४०३ २८५ २८८ २८८ १६८ ३०३ १६८ १६६ १८८ २८८ ३०३ २८८ १६८
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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