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________________ '३४३ ४८ १२२ ३०३ २८८ ३०३ २८८ ३०३ २८८ १४८ १६२ १६२ १६२ ३०३ २८८ ३०३ १६२ १४८ २८८ जीवो की मार्गणा' ४८७ अधो. तिर्य. लोक में १४ ४८८ खेचर , , , ४८६ उर्ध्व० तिर्य० बादर मे ४६० स्थलचर , , , ४६१ खेचर गति पचेन्द्रिय में ४६२ उरपर , , , ४६३ उर्ध्व. ,, प्र० शरीरी अनेक भववालो में ४६४ खेचर , प्र " " ४६५ , , , में। ४६६ भुजपर गति के तीन शरीरी में ४६७ खेचर गति त्रस मे ४६८ , ,तीन शरीरी में ४६६ खेचर गति तीन शरीरी में । ५०० स्थल चर , , ५०१ त्रस एक संस्थानी मे १४ ५०२ उरपर गति तीन शरीरी में ५०३ उर पर घ्राणेन्द्रिय मे ५०४ खेचर पर एकांत छद्मस्थ में ६ ५०५ तिर्य. ,, त्रस मे। ५०६ सज्ञी ति., तीन शरीरी मे ५०७ अन्तर्वीप के पर्याप्त के अलद्धिया मे १४ ५०८ उर पर ,, एकांत सकषाय मे १० ५०९ स्थल चर एकांत प्र० शरीरी वादर मे १६२ १६२ ३०३ २८८ १६२ ३०३ १४८ १६२ १६ २८८ २७३ २८८ १६८ १६२ १६२ ३०३ ४८ २८८ १६२ से ३०३ २८८ १६२ १६२ ४८ २४७ १९८ २८८ १६२
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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