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________________ P 1 १५. नव तत्व बार मिले पर बोध बीज - समकित का मिलना दुर्लभ है, ऐसा सोचे । ५२ धर्म भावना : सर्वज्ञ ने जो धर्मप्ररूपा है, वह ससार समुद्र से पार उतारने वाला है । पृथ्वी निरवलम्व निराधार है । चन्द्रमा और सूर्य समय पर उदय होते है । मेघ समय पर वृष्टि करते है । इस प्रकार जगत् मे जो अच्छा होता है, वह सब सत्य धर्म के पञ्च चारित्र प्रभाव से, ऐसा विचार करे | ५ चारित्र ५३ सामायिक चारित्र ५४ छेदोपस्थानिक चारित्र ५५ परिहार विशुद्ध चारित्र ५६ सूक्ष्म सपराय चारित्र ५७ यथाख्यात चारित्र । इस प्रकार ५७ भेद सवर के जान कर आचरण करने से निराबाध ( पीडा रहित ) परम सुख की प्राप्ति होगी । निर्जरा तत्व के लक्षण तथा भेद निर्जरा . बारह प्रकार की तपस्या द्वारा कर्मो का जो क्षय होता है, उसे निर्जरा तत्त्व कहते है । निर्जरा के १२ भेद • १ अनशन, २ उनोदरि, ३ वृत्तिसक्षेप ( भिक्षाचरो ), ४ रसपरित्याग, ५ कायक्लेश, ६ प्रतिसलीनता । (यह छ. बाह्य तप) ७ प्रायश्चित्त, ८ विनय, वैयावृत्य, १० स्वाध्याय, १९ ध्यान, १२ कायोत्सर्ग । ( यह छ. आभ्यन्तर तप ) इन बारह प्रकार के तप को जान कर जो इन्हे आदरेगा वह इस भव मे व पर भव मे निराबाध परम सुख पावेगा ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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