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जैनागम स्तोक संग्रह
बुरे कर्म को अकेला ही भोगेगा जिनके लिए पाप कर्म किए; वे भोगते समय कोई साथ नही देगे, इस प्रकार सोचे ।
४५ अन्यत्व भावना
इस जीव से शरीर पुत्र कलत्रादि धन-धान्य, द्विपद-चतुष्पद आदि सर्व परिग्रह अन्य है, ये मेरे नही, मै इनका नही, ऐसा सोचे । ४६ अशुचि भावना
यह शरीर सात धातुमय है व जिसमे से मल-मूत्र - श्लेष्मादि सदैव निकलता है, स्नान आदि से शुद्ध बनता नही, ऐसा विचार करे । ४७ आश्रव भावना
ये सारी जीव मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, प्रमादादि आश्रव द्वारा निरन्तर नए नए कर्म बाध रहे है, ऐसा सोचे ।
४८ संवर भावना :
व्रत, संवर, साधु के पंच महाव्रत, श्रावक के बाहरव्रत, सामायिक पौषधोपवास आदि करने से जोव नये कर्म नही बांधता, किंवा पूर्व कर्मो को पतले करता है; ऐसा करने के लिये विचार करे ।
४६ निर्जरा भावना :
चार प्रकार की तपस्या करने से निविड़ कर्म टूट कर दीर्घ ससार पार होता है, व अनेक लब्धिये भी प्राप्त होती है । ऐसा समझ कर तपस्या करने का विचार करे ।
५० लोक भावना :
चौदह रज्जु प्रमाण जो लोक है उसका विचार करे ।
५१ बोध भावना :
राज्य, देव, पदवी, ऋद्धि, कल्पद्रुमादि ये सर्व सुलभ है, अनन्त