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________________ बावन बोल २६६ २ अनाहारक में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य दो बाल व पंडित, दृष्टि २, भव्य अभव्य २, दडक २४ पक्ष २ । १५ भाषक द्वार के २ भेद १ भाषक मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दडक १६, पक्ष २ । २ अभाषक मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दडक २४ पक्ष २। १६ परित द्वार के ३ भेद । १ परित मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य १, दडक २४, पक्ष २ शुक्ल । ___ २ अपरित में-भाव ३, आत्मा ६, ( ज्ञान चारित्र छोड़ कर ) लब्धि ५, वीर्य १, दृष्टि १, भव्य अभव्य २, दण्डक २४, पक्ष १ कृष्ण । ३ नो परित नो अपरित मे-भाव २, आत्मा ४, लब्धि नही, वीर्य नही, दृष्टि १ समकित, नो भवी नो अभवी, दडक नही, पक्ष नही। १७ पर्याप्त द्वार के ३ भेद १ पर्याप्त मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३; भव्य अभव्य २, दडक २४, पक्ष २ । २ अपर्याप्त मे-भाव ५, आत्मा ७, (चारित्र छोडकर) लब्धि ५, वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि २, भव्य अभव्य २, दण्डक २४, पक्ष २ । ३ नो पर्याप्त नो अपर्याप्त मे भाव २ क्षायक व पारिणामिक, आत्मा ४, लब्धि नही, वीर्य नही, दृष्टि १ समकित दृष्टि, नो भव्य नो अभव्य, दण्डक नही, पक्ष नही ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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