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________________ २८८ जैनागम स्तोक संग्रह आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १ पडित, दृष्टि १ समकित, भव्य १, दंडक २, पक्ष १ शुक्ल । ४ परिहार विशुद्ध चारित्र मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १ पडित, दृष्टि १ समकित, भव्य १ दंडक १ पक्ष १ शुक्ल । ___ ५ सूक्ष्म संपराय चारित्र में ऊपर प्रमाणे । ६ यथाख्यात चारित्र मे-भाव ५, आत्मा ७ (कषाय छोड़ कर) लब्धि ५, वीर्य १, दृष्टि १, भव्य १, दंडक १, पक्ष १ । ७ असंयति में-भाव ५, आत्मा ७ ( चारित्र छोड़ कर ) लब्धि "५, वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २; दंडक २४, पक्ष २। ८ संयतासंयति में-भाव ५, आत्मा ७ ऊपर अनुसार, लब्धि ५, वीर्य १ बाल पंडित, दृष्टि १ समकित, भव्य १, दंडक २, पक्ष १ शुक्ल । हनो संयति नो असंयति नो संयतासंयति में-भाव २, क्षायक, पारिणामिक, आत्मा ४, लब्धि नही, वीर्य नही, दृष्टि १ समकित, नो भव्य नो अभव्य, दंडक नही, पक्ष नही। १३ उपयोग द्वार के २ भेद __१ साकार उपयोग मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३; दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दडक २४, पक्ष २। __ २ अनाकार उपयोग में--भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दंडक २४, पक्ष २ । १४ आहारक के २ भेद १ आहारक मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, भव्य अभव्य २, दडक २४, पक्ष २ ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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