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________________ बडा बासठिया २७७ ३ नो भव्य नो अभव्य में जीव का भेद नही, गुणस्थानक नही, योग नही, उपयोग १, लेश्या नहीं। ___भव्य प्रमुख तीन बोल मे रहे हुए जीवो का अल्पबहुत्व १ सब से - कम अभव्य २ इस से नो भव्य नो अभव्य अनन्त गुणा ३ इस से भव्य अनन्त गुणा। २१ चरम द्वार : १ चरम में-जीव का भेद १४, गुणस्थानक १४ योग १५, उपयोग १२. लेश्या ६ । २ अचरम मे--जीव का भेद १४, गुणस्थानक १ पहला, योग १३ आहारक का दो छोड कर, उपयोग ६-३ अज्ञान ३ ३ दर्शन, लेश्या ६। __ चरम प्रमुख दो बोल मे रहे हुए जीवो का अल्पवहुत्व १ सब से कम अचरम २ इससे चरम अनन्त गुणा। एवं दो गाथा के २१ बोल द्वार पर ६२ बोल कहे, तदुपरान्त अन्य वीतराग प्रमुख पाच बोल-चौदह गुणस्थानक व पाच शरीर पर ६२ वोल १ वीतराग मे-जीव का भेद १ सज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक ४ ऊपर का, योग ११-२ आहारक तथा २ वैक्रिय का छोडकर, उपयोग ६-५ ज्ञान ४ दर्शन, लेश्या १शुक्ल । २ समुच्चय केवली मे-जीव का भेद २ सज्ञो का, गुणस्थानक ११ ऊपर का, योग १५, उपयोग ६–५ ज्ञान ४ दर्शन । लेश्या ६। ३ युगल (युगलियो) में-जीव का भेद २ सज्ञी का, गुणस्थानक २, १ ला व ४ था, योग ११, ४ मन के ४ वचन के २ औदारिक के १ कार्मण का, उपयोग ६, २ ज्ञान का, २ अज्ञान का व २ दर्शन का, लेश्या ४ प्रथम ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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