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________________ 1 : ast बासठिया २७५ १६ परित द्वार . परितमे - जीव के भेद १४, गुणस्थानक १४, योग १५, उपयोग १२ लेश्या ६ । २ अपरित मे – जीव का भेद १४, गुणस्थानक १ पहला, योग १३ आहारक के दो छोड़ कर, उपयोग ६ -- ३, अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ | ३- नो परित नोअपरित मे जीव का भेद नही, गुणस्थानक नही, योग नही, उपयोग २ केवल के, लेश्या नही । परित प्रमुख तीन बोल मे रहे हुए जीवो का अल्पबहुत्व १ सब से कम परित २ इससे नो परित नो अपरित अनन्त गुणा ३ इससे अपरित अनन्त गुणा । १७ पर्याप्त द्वार १ पर्याप्त मे - जीव का भेद ७, गुणस्थानक १४ योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ । । २ अपर्याप्त मे - जीव का भेद ७, गुणस्थानक ३ – १, २, ४, योग ५ - २ ओदारिक का, २ वैक्रिय का, १ कार्मण का उपयोग &- .३ ज्ञान ३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ । ३ नो पर्याप्त नो अपर्याप्त मे - जीव का भेद नही, गुणस्थानक नही, योग नही, उपयोग २ केवल का, लेश्या नही । पर्याप्त प्रमुख तीन वोल मे रहे हुए जीवो का अल्पबहुत्ब १ सब से कम नो पर्याप्त नो अपर्याप्त २ इससे अपर्याप्त अनन्त गुरगा ३ इससे पर्याप्त संख्यात गुणा । १८ सूक्ष्म द्वार : १ सूक्ष्म मे - जीव का भेद २ सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपर्याप्त व पर्याप्त, गुणस्थानक १ पहला, योग ३–२ औदारिक तथा १ कार्मरण | उपयोग ३–२ अज्ञान व १ अचक्षुदर्शन, लेश्या ३ पहली ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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