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________________ वडा वासठिया २७३ २- ३ सामायिक व छेदोपस्थानिक में-- जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक ४–छट्टो से नववे तक, योग १४ कार्मण का छोडकर, उपयोग ७ । चार ज्ञान प्रथम व तीन दर्शन, लेश्या ६' । 7 ४ परिहार विशुद्ध में - जीव का भेद १ सजी का पर्याप्त, गुणस्था नक २-छट्ठा व सातवा, योग ४ मन के ४ वचन के १ औदारिक उपयोग ७–४ ज्ञान का ३ दर्शन का, लेश्या ३ ( ऊपर की ) । का, - - ५ सूक्ष्म सम्पराय मे - जीव का भेद १ सज्ञी का पर्याप्त, गुणस्था नक १ - दशवा, योग, उपयोग ७ लेश्या १ - शुक्ल । - ६ यथाख्यात में — जीव का भेद १ सज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक ४ ऊपर के योग ११ - ४ मन के ४ वचन के २ औदारिक के व १ कार्मण का उपयोग ε- तीन अज्ञान के छोडकर, लेश्या १ शुक्ल । ७ सयतासंयत मे - जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक १ पाचवा, योग १२ – २ आहारक का व एक कार्मरण का एव तीन छोड़ कर, उपयोग ६ - तीन ज्ञान - दर्शन, लेश्या ६ | ८ असयत मे—जीव का भेद १४, गुणस्थानक ४ प्रथम के, योग १३ - आहारक का २ छोडकर, उपयोग - ३ ज्ञान के, ३ दर्शन के, लेश्या ६ | नोसयत नो असंयत नो सयतासयत में - जीव का भेद नही, गुणस्थानक नही, योग नही, उपयोग २ केवल का, लेश्या नही । सयत प्रमुख नव बोल में रहे हुए जीवो का अल्पवहुत्व - १ सब से कम सूक्ष्मसपरायचारित्री २ इससे परिहार विशुद्धिकचारित्री सख्यात गुणा ३ इससे यथाख्यातचारित्री सख्यात गुणा ४ इससे छेदोपस्थापनिक चारित्रो सख्यात गुणा ५ इससे सामायिक चारित्री १८
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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