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________________ नव नत्व ११ ८२ प्रकार से पाप के फल भोगे जाते है । ये पाप जानकर जो पाप के कारण छोड़ेगे वे इस भव में तथा पर भव मे निरावार्ध परम सुख पावेगे । । ५ आश्रव तत्त्व के लक्षण तथा भेद आश्रव तत्व : जीव रूपी तालाब के अन्दर अव्रत तथा अप्रत्याख्यान द्वारा, विषय - कषाय का सेवन करने से इन्द्रियादिक नालो के द्वारा जो कर्मरूपी जल का प्रवाह आता है उसे आश्रव कहते है । यह आश्रव जघन्य २० प्रकार से और उत्कृष्ट ४२ प्रकार से होता है । आश्रव के जघन्य २० प्रकार १ श्रुतेन्द्रिय असंवर २ चक्षु, इन्द्रिय असवर ३ घ्राणेन्द्रिय असवर ४ रसनेन्द्रिय असवर ५ स्पर्शनेन्द्रिय असवर ६ मन असंवर ७ वचन असवर ८ काय असवर ६ वस्त्रवर्तनादि भण्डोपकरण अयत्ना से लेवे अयत्ना से रक्खे १० सूचीकुशाग्र मात्र भी अयत्ना से काम मे लेवे ११ प्रारणातिपात १२ मृषावाद १३ अदत्तादान १४ मैथुन १५ परिग्रह १६ मिथ्यात्व १७ अव्रत १८ प्रमाद १६ कषाय २० अशुभ योग । विशेष रीति से आश्रव के ४२ भेद - ५ आश्रव, ५ इन्द्रिय विषय ४ कषाय ३ अशुभ योग और २५ क्रिया | ये ४२ भेद आश्रव के जान कर जो इन्हे छोडेगा वह इस भव मे तथा पर भव में निरावाध परम सुख पावेगा 1
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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