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________________ - पाच इन्द्रिय २५६ ८ प्रविष्ट द्वार जिन इन्द्रियो के अन्दर अभिमुख (सामा) पुद्गल आकर प्रवेश करते है उसे प्रविष्ट कहते है। पाच इन्द्रियों में से चक्षु इन्द्रिय को छोड शेष चार इन्द्रिय प्रविष्ट है । और चक्षु इन्द्रिय अप्रविष्ट है। ९ विषय द्वार ( शक्ति द्वार ) प्रत्येक जाति की प्रत्येक इन्द्रिय का विषय जघन्य आगुल के असख्यातवे भाग उत्कृष्ट नीचे अनुसार :जाति पांच-श्रोत्रेन्द्रिय चक्षुइद्रिय घ्राणेन्द्रिय रसनेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय एकेन्द्रिय ४०० ध. बे इद्रिय ० ० ० ६ ४ ध० ८०० ध० त्रि इद्रिय ० ० , १०० ध० १२८ ध० १६०० ध० चोरिन्द्रिय ० २६५४ यो. २ ० ध० २५६ ध० ३२०० ध० असज्ञी प० १ योजन ५६०८ यो. ४०० ध० ५१२ ध० ६४०० ध० सज्ञी प० १२ योजन १ ला. यो. जा. यो. ६ यो योजन १० अनाकार द्वार ( उपयोग ) जघन्य उपयोग काल का अल्पवहुत्व :-सब से कम चाइन्द्रिय का जघन्य उपयोग काल, इससे श्रोत्रे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे घ्राणे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे रसे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे स्पर्शे० का जघन्य उपयोग काल विशेष। उत्कृष्ट उपयोग काल का अल्पबहुत्व .--सबसे कम चक्षु० का उत्कृष्ट उपयोग काल, इससे श्रोत्रे० का उत्कृष्ट उपयोग काल विशेष, इससे घ्राणे० का उ० उपयोग काल विशेष, इससे रसेन्द्रिय का उ० उपयोग काल विशेष, इससे स्पर्शे० का उ० उपयोग काल विशेष ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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