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पाच शरीर
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१५ स्थिति द्वार
औदारिक शरीर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम की २ वैक्रिय शरीर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की, ३ आहारक शरीर की अन्तर्मुहूर्त की, ४ तेजस् कार्मण शरीर की स्थिति दो प्रकार की - अभव्य आश्री आदि अन्त रहित, २ मोक्ष गामी आश्री अनादि सान्त (आदि नही, परन्तु अन्त है ) ।
१६ अन्तर द्वार
औदारिक शरीर छोड कर फिर औदारिक शरीर प्राप्त करने मे अन्तर पडे तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त व उत्कृष्ट ३३ सागरोपम २ वैक्रिय शरीर छोडकर फिर वैक्रिय शरीर पाने मे अन्तर पड़े तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त उ० अनन्त काल, ३ आहारक शरीर मे अन्तर पड़ े तो जघन्य अन्तर्मुहूर्तं उ० अर्ध पुद्गल परावर्तन काल से कुछ न्यून, ४-५ तेजस् कार्मण शरीर मे अन्तर नही पडे । अन्तर द्वार का दूसरा अर्थ आहारक शरीर को छोड शेष शरीर लोक मे सदा पावे । आहारक शरीर की भजना (होवे और नही भी होवे) नही होवे तो उत्कृष्ट ६ माह का अन्तर पड़े ।