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________________ जैनागम स्तोक संग्रह ६ ऊष्ण ७ स्निग्ध, रुक्ष एक-एक स्पर्श में वर्ण, २ गन्ध ५ रस, ६ स्पर्श और ५ संस्थान इस प्रकार २३-२३ बोल पाये जाते है । अर्थात् आठ स्पर्श में से दो स्पर्श कम कहना कर्कश का पूछा होवे तो कर्कण और कोमल ये दोनो छोडना । शीत का पूछा होवे तो शीत व ऊष्ण छोड़ना, स्निग्ध का पूछा होवे तो स्निग्ध व रुक्ष छोडना, ऐसे हरेक स्पर्श का समझ लेना एक-एक स्पर्श के २३-२३ के हिसाब से २३×८-१८४ बोल स्पर्श आश्रित हुए । १०० वर्ण के, ४६ गन्ध के, १०० रस के, १८४ स्पर्श के इस प्रकार सब हुए । इनमे अजीव अरूपी के अजीव के जानना | ८ १०० संस्थान के और मिलाकर ५३० भेद रूपी अजीव के ३० भेद मिलाने से कुल ५६० भेद इस प्रकार अजीव के स्वरूप को समझकर इन पर से जो मोह उतारेगा वह इस भव में व पर भव में निराबाध परम सुख पावेगा । पुण्य ३ : पुण्य तत्त्व के लक्षण तथा भेद पुण्य तत्व : पुण्य तत्व - जो शुभ करणी के व शुभ कर्म के उदय से शुभ उज्ज्वल पुद्गल का बध पडे व जिसके फल भोगते समय आत्मा को मीठे लगे उसे पुण्य तत्व कहते है । के भेद १ अन्नपुण्य २ पानी पुण्य ३ लयन पुण्य (मकानादि ) ४ शयन पुण्य ( पाटलादि ) ५ वस्त्र पुण्य ६ मन पुण्य ७ वचन पुण्य ८ काय पुण्य और नमस्कार पुण्य | इन नव प्रकार से जो पुण्य उपार्जन करता है वह ४२ प्रकार से शुभ फल भोगता है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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