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________________ जैनागम स्तोक सग्रह १२ अगमिक श्रुत-कालिक श्रुत ११ अग आचारांग प्रमुख । १३ अंग' प्रविष्ट - बारह अग (आचारांगादि से दृष्टिवाद पर्यन्त) सूत्र में इसका विस्तार बहुत है अतः वहाँ से जानो । १ आवश्यक १४ अनंगप्रविष्ट - समुच्चय दो प्रकार का २ आवश्यक व्यतिरिक्त । १ आवश्यक के ६ अध्ययन सामायिक प्रमुख २ आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद १ कालिक श्रुत २ उत्कालिक श्रुत | १ कालिकत इसके अनेक भेद है- उत्तराध्ययन, दशाश्रुत स्कन्ध, वृहत् कल्प, व्यवहार प्रमुख इकतीस सूत्र कालिक के नाम नदि सूत्र में आये है । तथा जिन २ तीर्थकर के जितने शिष्य (जिनके चार बुद्धि होवे) होवे उतने पइन्ना सिद्धान्त जानना जैसे ऋषभ देव के ८४ लाख पइन्ना तथा २२ तीर्थकर के सख्याता हजार पन्ना तथा महावीर स्वामी के १४ हजार पन्ना तथा सर्व गणधर के पइन्ना व प्रत्येक बुद्ध के बनाए हुए पन्ना ये सर्व कालिक जानना एवं कालिक श्रुत | २२८ २ उत्कालिक श्रुत - यह अनेक प्रकार का है । दशवैकालिक प्रमुख २९ प्रकार के शास्त्रो के नाम नदि सूत्र में आये है । ये और इनके सिवाय और भी अनेक प्रकार के शास्त्र है परन्तु वर्तमान में अनेक शास्त्र विच्छेद हो गये है । द्वादशांग सिद्धान्त आचार्य की सन्दूक समान, गत काल में अनन्त जीव आज्ञा का आराधन करके संसार दुख से मुक्त हुवे है वर्तमान श्रुत कहे हैं । अंग पविट्ठांच (अग गमिक तथा अगमिक के भेद मे २ भी नाम आये है । स्वाध्याय होती है वह कालिक १ अथवा समुच्चय दो प्रकार के प्रविष्ट) तथा अंग बाहिरं ( अनंग प्रविष्ट ) समावेश सूत्रकार ने किए है । मूल मे अलग २ पहले प्रहर तथा चौथे प्रहर जिसकी कहलाता है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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