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जैनागम स्तोक संग्रह १२ गायों (गौवे) के अन्दर गर्दभ समान स्त्री के विषय में गद्ध होकर आत्मा का अहित करने वाला माया मृषा वोले, अब्रह्मचारी होने पर भी ब्रह्मचारी का विरुद (रूप) धरावे तो महा मोहनीय (कारण लोक में धर्म पर अविश्वास होवे, धर्मी पर प्रतीत न रहे)।
१३ जिसके आश्रय से आजीविका करे, उसी आश्रयदाता की लक्ष्मी में लुब्ध होकर उसकी लक्ष्मी लटे तथा अन्य से लुटावे तो महामोहनीय।
१४ जिसकी दरिद्रता दूर करके ऊंच पद पर जिसको किया वह पुरुष ऊँच पद पाकर पश्चात् ईर्ष्या-द्वेष व कलुषित चित्त से उपकारी पुरुष पर विपत्ति डाले तथा धन प्रमुख की आमद में अन्तराय डाले तो महा मोहनीय ।
१५ अपना पालन-पोषण करने वाले राजा, प्रधान, प्रमुख तथा ज्ञानादि देने वाले गुरु आदि को मारे तो महामोहनीय ।
१६ देश का राजा, व्यापारी वृन्द का प्रवर्तक ( व्यवहारिया) तथा नगर सेठ ये तीनो अत्यन्त यशस्वी है, अतः इनकी घात करे तो महामोहनीय ।
१७ अनेक पुरुषो के आश्रय दाता-आधारभूत (समुद्र मे द्वीप समान) को मारे तो महामोहनीय ।
१८ सयम लेने वाले को तथा जिसने संयम ले लिया, हो, उसे धर्म से भ्रष्ट करे तो महामोहनीय ।
१६ अनन्त ज्ञानी व अनन्त दर्शी ऐसे तीर्थकर देव का अवर्णवाद (निन्दा। बोले तो महामोहनीय । ___ २० तीर्थकर देव के प्ररूपित न्याय मार्ग का द्वेषी बन कर अवर्णवाद बोले, निन्दा करे और शुद्ध मार्ग से लोगो का मन फेरे तो महामोहनीय ।