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________________ तेतीस बोल २ हाथ से प्राणी का मुख प्रमुख बाधकर व श्वांस रंधकर जीव को मारे तो महामोहनीय ।। ३ अग्नि प्रज्वलित कर, वाडादिक में प्राणी रोक कर धुवे से आकुल-व्याकुल कर मारे तो महामोहनीय । ४ उत्तमाग मस्तक को खड्ग आदि से भेदे-छेदे, फाड़े-काटे तो महामोहनीय। ५ चमडे के प्रमुख मे मस्तकादि शरीर को तान कर बाधे और बारम्बार अशुभ परिणाम से कदर्थना करे तो महामोहनीय । ६ विश्वासकारी वेष बनाकर मार्ग प्रमुख के अन्दर जीव को मारे व लोक मे आनन्द माने तो महामोहनीय। ७ कपटपूर्वक अपने आचार को गोपवे तथा अपनी माया द्वारा अन्य को पाश (जाल) में फसावे तथा शुद्ध सूत्रार्थ गोपवे तो महामोहनीय। ८ खुदने अनेक चोर कर्म बालघात (अन्याय) प्रमुख कर्म किये हुए हो तो उनके दोष अन्य निर्दोषी पुरुष पर डाले तथा यशस्वी का यश घटावे व अछता (झूठा) आल (कलङ्क) लगावे तो महामोहनीय। दूसरो को खुश करने के लिए द्रव्यभाव से झगडा ( क्लेश ) बढाने के लिये जानता हुआ भी सभा मे सत्य-मृषा (मिश्र) भाषा बोले तो महामोहनीय । १० राजा का भन्डारी प्रमुख, राजा, प्रधान तथा समर्थ किसी पुरुष की लक्ष्मो प्रमुख लेना चाहे तथा उस पुरुष की स्त्री का सतीत्व नष्ट करना चाहे तथा उसके रागी पुरुषो का (हितैषी-मित्र आदि) दिल फेरे तथा राजा को राज्य कर्तव्य से च्युत करे तो महामोहनीय। ११ स्त्री आदि गृद्ध होकर विवाहित होने पर भी (मैं कुवारा हूँ), कुमारपने का विरुद धरावे तो महामोहनीय ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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