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________________ १८७ श्री गुणस्थान द्वार नही, चलने का होवे वहां बैठने का नही और बैठने का होवे वहां चलने का नही। १४ : मार्गणा द्वार पहले गुण० मार्गणा ४ तीसरे, चौथे, पाचवे, सातवे जावे । दूसरे गुण० मार्गणा १, गिरे तो पहले गुण. आवे (चढे नही)। तीसरे गुण० ४, गिरे तो पहले आवे और चढे तो चौथे, पाँचवे, सातवे जावे। चौथे गुण० मार्गणा ५, गिरे तो पहले गुण० दूसरे, तीसरे गुण. आवे और चढे तो पाँचवे, सातवे जावे । पाचवे गु० मा० ५, गिरे तो पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे गु० आवे और चढे तो सातवे जावे । छटठे गु० मा० ६, गिरे तो पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे गु० आवे और चढे तो सातवे जावे । सातवे गु० मा० ३, गिरे तो छट्टे चौथे आवे और चढे तो आठवे गु० जावे । आठवे गु० मा० ३, गिरे तो सातवे चौथे आवे और चढे तो नववे गु० जावे। नववे गु० मा० ३, गिरे तो आठवे चौथे आवे और चढे तो दशवे जावे । दशवे गुणों मा० ४, गिरे तो नववे चौथे आवे चढे तो ग्यारहवे बारहवे जावे। ग्यारहवे गु० मा० २, काल करे तो अनुत्तर विमान मे जावे और गिरे तो दशवे से पहले तक आवे, चढे नही । बारहवे ग० मा० १, तेरहवे जावे, गिरे नही । तेरहवे गुण० मा० १, चौदहवे जावे, गिरे नही । चौदहवे गु० मा० नही, मोक्ष जावे । १५ • आत्मा द्वार । ___ आत्मा आठ-१ द्रव्यात्मा, २ कषायात्मा, ३ योगात्मा, ४ उपयोगात्मा, ५ ज्ञानात्मा, ६ दर्शनात्मा, ७ चारित्रात्मा,८ वीर्यात्मा एवं ८ । पहले, तीसरे गु० ३ आत्मा, ज्ञान और चारित्र ये २ छोड कर, दूसरे चौथे गु० ७ आत्मा चारित्र छोड कर, पांचवे गु० भी ७
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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