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________________ श्री गुणस्थान द्वार 69 की पूर्व में अगर आयुष्य का बन्ध न पड़ा हो तो फिर सात बोल का बन्ध नहीं पड़े-नरक का आयुष्य, भवनपति का आयुष्य, तिर्यञ्च का आयुष्य, बाणव्यन्तर का आयुष्य, ज्योतिषी का आयुष्य, स्त्री वेद, नपुंसक वेद एवं सात का आयुष्यं बँधे नहीं यह जीव समकित के आठ आचार आराधता हुआ और चतुविध सघ की वात्सल्यता पूर्वक, परम हर्ष सहित भक्ति (सेवा) करता हुआ जघन्य पहले देवलोक मे उत्पन्न होवे, उत्कृष्ट बारहवे देवलोक में । शाख पन्नवणाजी सूत्र की। पूर्व कर्म के उदय से व्रत पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान ) कर नहीं सके, परन्तु अनेक वर्ष की श्रमणोपासक की प्रव्रज्या का पालक होवे दशाश्रु तस्कन्ध मे जो श्रावक कहे है उनमे का दर्शन श्रावक को अविरत ( अव्रती ) समदृष्टि कहना चाहिये। ___५ देशव्रती गुणस्थान –उक्त ( ऊपर कही हुई ) सात प्रकृति व अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोभ एव ११ प्रकृति का क्षयोपशम करे। ११ प्रकृति का क्षय करे वो क्षायक समकित और ११ प्रकृति को ढाके व उपशमावे वह उपशमित और ११ प्रकृति को कुछ उपशमावे तथा कुछ क्षय करे वह क्षयोपशम समकित । पाँचवे गुण स्थान पर आया हुआ जीवादिक पदार्थ द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से नोकारसी आदि छमासी तप जाने, श्रद्ध प्ररूपे व शक्ति प्रमाणे फरसे । एक पच्चखाण से लगा कर १२ व्रत, श्रावक की ११ पडिमा आंदरे यावत् सलेखणा (सलेषणा) तक अनशन कर आराधे । तिवारे ( उस समय ) गौतमस्वामी हाथ जोड मान मोड श्री भगवन्त ___ को पूछने लगे-हे स्वामीनाथ ! इस जीव को किस गुण की प्राप्ति न होवे ? तब भगवन्त ने उत्तर दिया कि जघन्य तीसरे भव मे व । उत्कृष्ट १५ भव मे मोक्ष जावे। जघन्य पहले देवलोक मे उत्कृष्ट । १२ वे देवलोक मे । साधु के व्रत की अपेक्षा से इसे देशवती कहते 1 १२
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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