SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छः आरो का वर्णन १५३ ६ गुरु की निन्दा करने वाला शिष्य होवे । १० दुर्जन लोग सुखी होवे । ११ सज्जन लोग दुखी होवे । दुर्भिक्ष अकाल बहुत होवे। १३ सर्प, विच्छु, दश, मत्कुणादि क्षुद्र जीवों की उत्पत्ति बहुत होवे। १४ ब्राह्मण लोभी होवे। १५ हिंसा धर्म प्रवर्तक बहुत होवे। १६ एक मत के अनेक मतान्तर होवे । १७ मिथ्यात्वी देव बहुत होवे। १८ मिथ्यात्वी लोग की वृद्धि होवे। १६ लोगो को देव-दर्शन दुर्लभ होवे । २० वैतादयगिरि के विद्याधरो की विद्या का प्रभाव मन्द होवे। २१ गो रस ( दुग्ध, दही, घी ) मे स्निग्धता (चिकनाई) कम होवे। २२ बलद ( ऋषभ) प्रमुख पशु अल्पायुषी होवे । २३ साधु-साध्वियो के मास, कल्प, चातुर्मास आदि मे रहने योग्य क्षेत्र कम होवे। २४ साधु की १२ प्रतिमा व श्रावक की ११ प्रतिमा के पालक नही होवे (श्रावक की ११ प्रतिमा का विच्छेद कोई कोई मानते है)। २५ गुरु शिष्य को पढावे नही। २६ शिष्य अविनीत (क्लेशी) होवे। २७ अधर्मी, क्लेशी, कदाग्राही, धूर्त, दगाबाज व दुष्ट मनुष्य अधिक होवे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy