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________________ १५२ जैनागम स्तोक संग्रह पधारने के बाद दस बोल विच्छेद १ परम अवधि जान २ मन. पर्ययज्ञान ३ केवल ज्ञान ४ परिहार विशुद्ध चारित्र ५ सूक्ष्मसंपराय चारित्र ६ यथाख्यात चारित्र - ७ पलाक लब्धि क्षपक — उपशम श्रेणी आहारक शरीर १० जिनकल्पी साधु-ये दश बोल विच्छेद हुए । पांचवां आरा चौथे आरे के समाप्त होते ही २१००० वर्ष का 'दुखम' नामक पाँचवां आरा प्रविष्ट होता है तब पूर्वापेक्षा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श की उत्तम पर्यायो में अनन्त गुण हीनता हो जाती है । क्रम से घटतेघटते सात हाथ का ( उत्कृष्ट ) शरीर व २०० वर्ष का आयुष्य रह जाता है । उतरते आरे एक हाथ का शरीर व वीस वर्ष का आयुष्य रह जाता है - इस आरे के संघयन छ, सस्थान छः, उतरते आरे सेवार्त्त संघयण, हुडक संस्थान व शरीर में केवल १६ पांसलिये व उतरते आरे केवल आठ पांसलिये जानना । मनुष्यों को इस आरे में दिन में दो समय आहार की इच्छा होती है तब शरीर प्रमाणे आहार करते है । पृथ्वी का स्वाद कुछ ठीक जानना व उतरते आरे कुम्भकार (कुम्हार) की मिट्टी की राख समान । इस आरे में गति चार ( मोक्ष गति छोड़कर ) पाँचवें आरे के लक्षण के ३२ बोल | १ नगर (शहर) गांव जैसे होवे । २ ग्राम श्मशान जैसे होवे । ३ सुकुलोत्पन्न दास दासी होवे । ४ प्रधान (मन्त्री) लालची होवे । ५ यम जैसे क्रूर दंडदाता राजा होवे । ६ कुलीन स्त्री लज्जा रहित ( दुराचारिणी) होवे । ७ कुलीन स्त्री वेश्या समान कर्म करने वाली होवे । ८पिता की आज्ञा भंग करने वाला पुत्र होवे ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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