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________________ १३६ जैनागम स्तोक संग्रह तिर्यच गर्भज व मनुष्य गर्भज में जघन्य एक समय उत्कृष्ट वारह मुहूर्त का । मनुष्य संमूर्छिम में जघन्य एक समय उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त का। सिद्ध मे अन्तर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट छः माह का। इसी प्रकार सिद्ध को छोड़कर शेष मे चवने का अन्तर उक्त उत्पन्न होने के अन्तर के समान जानना । तीसरा सअन्तर-निरन्तर द्वार सअन्तर अर्थात् अन्तर सहित, निरन्तर अर्थात् अन्तर रहित उत्पन्न होवे। पॉच एकेन्द्रिय के पाँच दण्डक छोड़कर शेप उन्नीस दण्डक में तथा सिद्ध में सअन्तर तथा निरन्तर उत्पन्न होवे। ___ पाँच एकेन्द्रिय के पाँच दण्डक में निरन्तर उत्पन्न होवे ऐसे ही उद्वर्तन (चवने का) जानना (सिद्ध को छोडकर)। ४ एक समय में किस बोल मे कितने उत्पन्न होवे व चवे उसका द्वार सात नरक, ७, दस भवनपति, १७. वाणव्यन्तर, १८. ज्योतिषी, १६. पहले देवलोक से आठवे देवलोक तक, २७. तीन विकलेन्द्रिय, ३०. तिथंच संमूझिम, ३१. तिथंच गर्भज, ३२. मनुष्य संमूछिम, ३३. इन तेंतीस बोल में एक समय में जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट उपजे तो असंख्याता उपजे । नववां, दसवां, ग्यारवा व वारहवा देवलोक ये चार देवलोक ४, नव ग्रंवेयक, १३, पॉच अनुत्तर विमान १८ मनुष्य गभज १६ इन उन्नीस बोल मे जघन्य एक समय मे एक, दो, तीन उत्कृष्ट सख्याता उपजे, पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु इन चार एकेन्द्रिय में समय-समय असंख्याता उपजे वनस्पति में समय-समय असंख्याता (यथास्थाने) अनन्ता उपजे ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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