SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वदनीय, २ कपाणड कर शेष चार चौबीप दण्डक १०३ २ नील ३ कापोत ४ तेजो। पर्याप्ता में तीन-१ कृष्ण २ नील ३ कापोत । तेजस् (अग्नि) और वायुकाय मे तीन-१ कृष्ण २ नील ३ कापोत । ८ इन्द्रिय द्वार . पांच एकेन्द्रिय मे एक इन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिय । ६ समुद्धात द्वार : वायुकाय को छोड कर शेष चार एकेन्द्रिय में तीन समुद्घात १ वेदनीय, २ कषाय और ३ मारणान्तिक | वायु काय मे चार १ वेदनीय २ कषाय ३ मारणान्तिक ४ वैक्रिय ।। १० संज्ञी द्वार : पांचो एकेन्द्रिय असंज्ञी। ११ वेद द्वार: पांच एकेन्द्रिय में नपुंसक वेद । १२ पर्याप्ति द्वार : पांच एकेन्द्रिय में पर्याप्ति चार (पहली) अपर्याप्ति चार । १३ दृष्टि द्वार : पाच एकेन्द्रिय में एक मिथ्यात्व दृष्टि । १४ दर्शन द्वार : पांच एकेन्द्रिय में एक अचक्षु दर्शन । १५ ज्ञान द्वार : पांच एकेन्द्रिय में दो अज्ञान १ मति अज्ञान २ श्रुत अज्ञान । १६ योग द्वार: वायुकाय को छोड कर शेष चार एकेन्द्रिय में योग तीन
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy