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________________ १०२ जैनागम स्तोक संग्रह दो गति-मनुष्य और तिर्यञ्च का आवे और दो गति-मनुष्य और तिर्यञ्च में जावे। ___ नवे देवलोक से सर्वार्थसिद्ध तक एक गति-मनुष्य का आवे और एक गति-मनुष्य में जावे । पांच एकेन्द्रिय के पांच दण्डक १ शरीर द्वार :वायु काय को छोड शेष चार एकेन्द्रिय में शरीर तीन १ औदारिक २ तेजस् ३ कार्माण। वायुकाय में चार शरीर १ औदारिक २ वैक्रिय ३ तेजस् ४ कार्माण । २ अवगाहना द्वार :पृथ्व्यादि चार एकेन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग। वनस्पति की अवगाहना ज० अंगुल के असंख्यातवे भाग उ० हजार योजन झाझेरी कमल नाल आश्रित । ३ संघयन द्वार : पांच एकेन्द्रिक में सेवार्त संघयन । ४ संस्थान द्वार: पांच एकेन्द्रिय में हुण्डक संस्थान । ५ कषाय द्वार : पांच एकेन्द्रिय में कषाय चार । ६ संज्ञा द्वार: पांच एकेन्द्रिय में संज्ञा चार । ७ लेश्या द्वार : पृथ्वी, अप व वनस्पति काय-अपर्याप्त में लेश्या चार १ कृष्ण
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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