SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम स्तोक संग्रह १६ उत्पति द्वार चौवीस दण्डक का आवे । सात नरक का एक दण्डक १, दस भवन पति के दश दण्डक ११, पृथ्वीकाय का एक दण्डक १२, अपकाय का एक दण्डक १३, तेजस् काय का एक १४, वायु काय का एक १५, वनस्पति काय का एक १६, वेइन्द्रिय का एक १७, त्रोन्द्रिय का एक १८, चौरिन्द्रिय का एक १६, तिर्यञ्च पचेन्द्रिय का एक, २० मनुष्य का एक, २१ वाणव्यन्तर का एक, २२ ज्योतिषी का एक, २३ वैमानिक का एक, २४ । २० स्थिति द्वार स्थिति जघन्य अन्तरमुहूर्त की उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। २१ मरण द्वार समोहिया मरण, असमोहिया मरण । समोहिया मरण जो चीटी की चाल के समान चले और असमोहिया मरण जो दडी के समान चले । (अथवा वन्दूक की गोली समान)। २२ चवन द्वार चौवीस ही दण्डक मे जावे-पहले कहे अनुसार । २३ आगति द्वार चार गति मे से आवे । १ नरक गति, २ तिर्यञ्च गति, ३ मनुष्य गति, व ४ देव की गति में से । __ २४ गति द्वार पांच गति में जावे । १ नरक गति मे, २ तिर्यञ्च गति में, ३ मनुष्य गति मे, ४ देव गति मे, ५ सिद्ध गति मे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy