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________________ चौवीस दण्डक ८७ १ औदारिक शरीर :-- जो सड़ जाय, पड़ जाय, गल जाय, नष्ट हो जाय, बिगड़ जाय व मरने के बाद कलेवर पड़ा रहे, उसे औदारिक शरीर कहते है । २ वैक्रिय शरीर ~~ (औदारिक का उल्टा ) जो सड़े नही, पड़े नही, गले नही, नष्ट होवे नही व मरने के बाद विखर जावे उसे वैक्रिय शरीर कहते है। ३ आहारक शरीर : चौदह पूर्वधारी मुनियों को जब शड्डा उत्पन्न होती है तब एक हाथ की काया का पुतला बनाकर महाविदेह क्षेत्र में श्री मन्दिर स्वामी से प्रश्न पूछने को भेजें । प्रश्न पूछकर पीछे आने के बाद यदि आलोचना करे तो आराधक व आलोचना नही करे तो विराधक कहलाते है, इसे आहारक शरीर कहते हैं। ४ तेजस् शरीर :__ जो आहार करके उसे पचावे, उसे तेजस् शरीर कहते हैं। ५ कार्माण शरीर : जीव के प्रदेश व कर्म के पुद्गल जो मिले हुए हैं, उन्हे कारण शरीर कहते है। २ अवगाहना द्वार जीवों मे अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट हजार योजन झाझेरी ( अधिक ) औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य अगुल के असंख्यातवें भाग। उत्कृष्ट हजार योजन झाझेरी (वनस्पति आश्रित )। ___-वैक्रिय शरीर की-भव धारणिक वैक्रिय की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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