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________________ ८४ जैनागत स्तोक संग्रह ४७ पंडग वन में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दो सि० होते है। ४८ अकर्म भूमि मे एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दश सि० होते है। ४६ कर्मभूमि में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते है। ५० पहले आरे में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दश सि० होते है। ___५१ दूसरे आरे में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दश सि० होते है। ५२ तीसरे आरे में एक समय मे जघन्य एक उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते है। ___५३ चौथे आरे में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट १०८ सि० होते है। ५४ पांचवे आरे में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दस सिद्ध होते है। ५५ छठे आरे में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट दश सिद्ध होते है। ५६ अवसर्पिणी में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते हैं। ___५७ उत्सर्पिणी में एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते हैं। ५८ नोत्सपिणी नो अवसर्पिणी मे एक समय में जघन्य एक, उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते है । ___ इन ५८ बोलों में अन्तर सहित एक समय में जघन्य-उत्कृष्ट
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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