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प्रसङ्ग वीसवां दो साधु जला दिए
[गोशालक] गोशालक डकोत जातिका था। दीक्षाके बाद दूसरा चौमासा भगवान महावीरने नालन्दा (राजगृह ) में किया। गोशालकने प्रभुके त्याग एवं तपस्यासे प्रभावित होकर उनके पास दीक्षा ली। यद्यपि केवलज्ञान होनेसे पहले तीर्थकर दीक्षा नहीं देते, लेकिन भावीवश भगवान् उसे नहीं टाल सके ।
अविनीत गोशालक शुरूसे ही अविनीत था । प्रायः प्रभुकी बातको प्रसिद्ध करनेकी चेष्टा किया करता था। एक बार गुरु-चेले सिद्धार्थपुरसे कूर्मग्रामको जा रहे थे। रास्तेमे तिलका बूटा देख
कर गोशालकने पूछा- भगवन् ! क्या इसमें तिल उत्पन्न होंगे? __ भगवान बोले, हां ! इन सात फूलोंके जीव इस बूटेकी एक फलीमें
सात तिल होंगे। भगवान आगे पधार गये और उस अविनीतने ___ उस बूटेको उखाड़ कर ही फैक दिया।
वचा लिया आगे कूर्म-ग्रामके बाहर वैश्यायन नामक तपस्वी धूपमें उलटे सिर लटकता हुआ तपस्या कर रहा था। उसकी जटासे जूएँ गिर रही थी और वह पुनः उन्हें उठा-उठा कर अपनी जटाओंमें रख रहा था । गोशालकने जूओंका शय्यातर-घर कह कर उसे छड़ा। उसने गुस्से होकर उष्ण-तेजोलेश्या छोड़ दी। गोशालक