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________________ : ङ : हो सका है, बाते सक्षेप और बहुत ही सीधी-सादी भाषामे लिखी गई है, ताकि बाल, वृद्ध एवं अल्पशिक्षित भाई-बहिने भी पढ़कर प्राचीन - आदर्शपुरुपोंके जीवनको जान सके तथा उससे अमूल्य शिक्षाओं को ले सके । कहानियां दो तरह की होती हैं- एक तो बनी हुई और दूसरी बनाई हुई । यद्यपि अहिंसा आदि तत्त्वोंको समझाने के लिए अपनी बुद्धिसे बनाई हुई कहानिया भी सत्य है, फिर भी बनी हुई घटनाका महत्त्व कुछ और ही होता है । इस पुस्तकमे लिखी हुई बाते ऐतिहासिक हैं और प्राचीन जैनग्रन्थोंसे प्रमाणित हैं अतः निःसंदेह महत्त्वपूर्ण हैं । प्रेरणा आचार्यश्री तुलसी वार-बार यही प्रेरणा दिया करते हैं कि प्रामाणिक - साहित्यका सर्जन जितना भी अधिक हो उतना ही धर्मप्रचार विशेषरूपसे होगा । सम्भव है । इसी पावनप्रेरणा से यह पुस्तक तैयार हुई हो ! आशा ही नहीं, अपितु दृढ़ विश्वास है कि धर्मके जिन्नासु लोग इसे पढकर अवश्य लाभ उठायेंगे और मेरे प्रयासको सफल बनायेंगे । धनमुनि
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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