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जैन-जीवन
वहां गये गर्व तक्षक उनको नप रोटियां देने लगा। मुनि ले रहे. हैं, मुधार दे रहा है और हिरन उसकी प्रशंसा कर रहा है कि धन्य है उस दाताको, जो ऐसे मुनिको शुद्ध भिक्षा दे रहा है। मैं मी यदि मनुष्य होता तो दान देकर अपनेको कृतार्थ करता। ऐसे सोच ही रहा था कि हवाका एक जोरदार झोंका आया, उससे वृक्षकी एक डाली टूट कर उन तीनों पर गिरी और सद्भावनामें मरकर तीनों ही बालोकमें महर्धिक देवता हो गये।