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________________ प्रसङ्ग पांचवां काँचके महलमें केवलज्ञान चक्रवर्ती - भरत दुनिया मे दो तरह के मनुष्य होते हैं - एक तो मायाके मालिक और दूसरे मायाके गुलाम । मालिक चीनीकी मक्खीके समान स्वाद लते हैं और उसमे फंसते नहीं, परन्तु गुलाम श्लेष्मकी मक्खीकी तरह मायामें फंसकर बरबाद हो जाते हैं एवं स्वाद भी कुछ नहीं ले पाते । श्लेष्मकी मक्खी तो सारी दुनिया बन ही रही है, किन्तु धन्य तो वे हैं जो चीनोकी मस्त्री बनकर भरत-चक्रवर्तीवत देखतेदेखते उड़ जाते हैं। भरतकी ऋद्धि बाहुबलि आदि बन्धु-गण और वहिन सुन्दरीकी दीक्षाके बाद मरत अयोध्यामे राज्य करने लगे। उनके नव निधान थे, चौदह रत्न थे, बीस हजार चान्दीकी खाने थी, बीस हज़ार सोने की खाने थीं, सोलह हजार रत्नों की खानें थीं। चौसठ हजार रानियों थी, बत्तीस हजार राजा उनकी आज्ञा मानते थे एवं पच्चीस हजार देवता उनकी सेवा करते थे। इतना कुछ होते हुए भा वे अन्दरसे बिल्कुल उदासीन एवं विरक्त रहते थे और खुदको राजा न मानकर एक मुसाफिर मानते थे। यद्यपि चक्रवर्ती होनेके नाते उनके चौरासी लाख हाथी थे, चौरासी लाख घोडे थे, चौरासी लाख सांग्रामिक रथ थे और छियानबे करोड़ पैदल सेना थी। समय भरतका
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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