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________________ ਵੈਜ ਡੀਕਰ एकदटी हो गया वो कोई त्रिदण्डी । ऐसे अनेक मतों का प्रादु मत्र हो गया। ? अक्षयतृतीय) एक वर्ष के बाद बाहुलि के पौत्र श्रं यांशकुमार ने जातिस्मरणशान द्वारा भिक्षा की विधि जानकर प्रभु को इतुरम से पारण। करवाया | वह दिन ग्रनयतृतीया ( इत्रु तीज ) कहलाया । एक हजार वर्ष की घोरतपस्या के बाद प्रभु ने केवलज्ञानी बनार भारतीय स्थापन हिये । प्रापभसेन आदि ८४००० माधु हुए। वाली यादि ३००००० मानियो हई, माटे तीन लास श्रावक हुए और पोचला चौवन हजार भाविकाएँ हुई । माघ कृष्ण त्रयोदशी के दिन प्रभु दन हजार साधुओं के साथ कैलाश पर्वत पर मुक्ति में पधारे।
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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