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________________ प्रसङ्ग बाईसवां श्री जम्बूस्वामी वास्तवमे त्यागी वही है जो प्राप्त भोगोंको ठोकर मारता है, सन्तोपी वही है जो प्राप्त धनको छोड़ता है, क्षमावान् वही है जो आए हुए गुस्सेको दवाता है और मर्द वही है जो मार सकने पर भी नहीं मारता । श्री जम्बूम्वामीके त्याग एव वैराग्यकी कहां तक प्रशंसा की जाए, जिन्होंने शामको आठ-आठ सुन्दरियोंसे विवाह किया और सवेरे संयम ले लिया। संयम भी अकेलेने नहीं लिया, किन्तु पाँच-सौ सत्ताईसके साथ लिया था। जन्म और वैराग्य राजगृह नगरमे ऋषमदत्त सेठ था। धारणी सेठानी थी और उनके जम्यूकुमार नामक एक पुत्र था। वह पढ़-लिखकर तैयार हुआ, बड़े बडे रईसोंकी आठ पुत्रियोंसे उसका सम्बन्ध किया गया एव विवाह भी निश्चित हो गया। केवल एक ही दिन की देरी थी कि अचानक भगवान श्री महावीरके पट्टधर शिष्य श्री सुधर्मस्वामी वहां पधारे । अपना अहोभाग्य मानते हुए हज़ारों नगर निवासी दर्शनार्थ उपस्थित हुए, जिनमे जम्बूकुमार मी शामिल थे। सुधर्मस्वामीने अपनी प्रोजस्विनी वाणीमे संसारको निस्सार कहा, विषय-विलासोंको बूरके लड़के समान कहा तथा मौतिकसुखोंको मृगमरीचिकाकी उपमा दी। यह सुनकर जम्बूकुमार वैराग्यमावनासे प्रोत-प्रोत हो गए एवं
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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