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( ८३ ) - समझ कर अनती (साधु के सिवा अन्य लोगों) को दान देने
से बचने का उपाय करे। जो साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देने का शुद्ध मन से त्याग करता है, उसका पाप टल जाता है और भगवान महावीर उसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हैं। :
इस तरह साधु के सिवाय और सभी जीव को. दान देना, पाप ठहरा कर तेरह-पन्थी लोग, साधु के सिवाय और.को दान देने का त्याग कराते हैं। तेरह-पन्थियों की इस मान्यता से-'. . : (१) भूखे को भोजन, प्यासे को पानी नंगे को वब वर्षा, शीत व ताप से कष्ट पाते हुए को स्थान देना पाप है। .:.
(२) कबूतरों को दाना डालना तथा गायों को पास डालना प्रादि भी पाप है। . (३) और तो ठीक, परन्तु अपने माता-पिता को भोजन देना और उनकी सेवा करना भी पाप है। .... इसी तरह देना मात्र पाप हो जाता है, फिर वह चाहे ब्राह्मण को दिया गया हो, भिखारी को दिया गया हो, अपंग अपाहिजे को दिया गया हो, कोड़ी कबूतर को दिया गया हो, गौशाला
यह बताया जा चुका है कि तेरह पन्थी साधु, केवल अपने को ही साधु मानते हैं, और किसी को भी साधु नहीं मानते हैं। वे, प्रती का अर्थ साधु ही करते हैं, वतधारी श्रावक की गणना भी अव्रती और कुपात्र में करते हैं। . . .