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व्यभिचारिणी होता है। ऐसा होते हुए भी तेरह - पन्थी लोग 'भ्रमविध्वंसन' पृष्ठ ८५ में 'सई' शब्द का अर्थ संयति, और 'असई' शब्द का अर्थ असंयति करते हैं । ऐसा अर्थ वे यह बताने के लिए करते हैं कि देखो, असंयति का पोषण करना, पन्द्रह कर्मादान में से एक है, और पन्द्रह कर्मादान, श्रावक के लिए सर्वथा श्याज्य हैं, इसलिए असंयति ( साधु के सिवाय अन्य लोगों ) का पोषण करना पाप है। वे 'भ्रम-विध्वंसन' पृष्ठ ८५ में लिखते हैं" तिहां 'असती जण पोसणया' तथा 'असई पोषणया' कलो छे । एह नो अर्थ केतलाक विरुद्ध करे छे । अने इहाँ १५ व्यापार का छे । ति वारे कोई इम कहे इहाँ असंयती पोष व्यापार कह्यो छे । तो तुम्हें अनुकम्पा रे अर्धे असंयमी ने पोष्याँ व्यापार किम को छो । तेहनो उत्तर- ते असंयती पोपी पोषी ने व्यापार करे । ते असंयती ने पोषे ते व्यापार नथी कहिये । परं पाप किम न कहिये । जिम कोयला करी वेचे ते 'अंगाल कर्म' व्यापार अने दाम विना आग लाय ने कोयलां करी आपे ते व्यापार नथी परं पाप किम न कहिये । तिम असंयती
* उनके कहने का अभिप्राय यह है कि कई लोग 'असती' (वेश्या -आदि) पोषण अर्थ करते हैं ।