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( ५६ ) करके नर्क में उत्पन्न होता है यथा महारम्भ करके महा परिमई. करके.पंचेन्द्रिय का वध करके और माँस-भक्षण करके । i. शास्त्र का यह पाठ होने पर भी यानी पंचेन्द्रिय का वध. नरक का कारण होने पर भी कारण सहित पंचेन्द्रिय-बध करने वाला भी.नरक नहीं जाता है। जैसे वर्णनागनतुया और राजा चेटक ने अनेकों मनुष्य मार डाले, फिर भी नरक नहीं गये । इस प्रकार सकारण की हुई पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा भी कारणवश क्षम्य मानी जाती है, तब एकेन्द्रिय जीव की हिंसा करने वाला उस कसाई की तरह का हिंसक कैसे हो सकता है, जो पाँच पाँच सौ पंचेन्द्रिय जीव नित्य मारता है ? क्या दोनों की हिंसा समान है, और दोनों की हिंसा का फल भी समान होगा ? यदि नहीं तो पाँच सौ पंचेन्द्रिय जीव हनने वाले कसाई की तुलना में सब जीवों को ठहराकर उनको बचाना या उनकी सहायता करने के कार्य को पाप बताना कैसे उचित है? इसके सिवाय करुणा करके कसाई को बचाना मी पाप नहीं कहा जा सकता, यह बात हम अगले किसी प्रकरण में बतायेंगे. यहाँ तो केवल इस बात पर थोड़ासा प्रकाश डालते हैं कि तेरह पन्थियों का यह कथन कहाँ तंक उचित है, कि संयति (साधु) के सिवाय सब लोग कुपात्र हैं। ': पहिला प्रश्न तो यह है कि कुपात्र शब्द तेरह-पन्थी लोग कहाँ से ढूँड लाये । : शास्त्र में तो 'कुपात्र' शब्द पाया ही नहीं