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( ५४ ) .: जिम कोई कसाई पाँच सौ पाँच सौ पंचेन्द्रिय जीव नित्य इणे छे, ते कसाई ने कोई मारतो हुवे तो तिण ने उपदेश देवे । ते तिण ने तारवाने अर्थे पिण कसाई ने जीवतो राखण ने उपदेश न देवे । यो कसाई जीवतो रहे तो आछो, इम कसाई नो जीवणो वांछणो नहीं। केई पंचेन्द्रिय हणे केई एकेन्द्रिय हणे छे । ते माटे असंयति जीव ते हिंसक छ। हिंसक नो जीवणों वांछियाँ धर्म किम हुवे ? - इस प्रकार तेरह-पन्थी अपने सिवाय सब को वैसा ही हिंसक कहते हैं, जैसा हिंसक नित्य पाँच सौ-पाँच सौ गाय या बकरे आदि पंचेन्द्रिय जीव मारने वाला कसाई होता है। तथा सब जीवों को, चाहे वह श्रावक हो या तेरह-पन्थ सम्प्रदाय के सिवाय अन्य किसी सम्प्रदाय का साधु भी हो, नित्य पाँच सौ गाय मारने वाले कसाई की तरह हिंसक ठहरा कर कहते हैं कि ऐसे हिंसक को बचाने, अथवा दान देने या उनकी सेवा सहायता करने से धर्म कैसे हो सकता है ? यह सघ तो पाप ही है।
तेरह-पन्थी साधु एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों को समान । तथा एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा को समान कहते हैं तथा एकेन्द्रिय जीव की हिंसा करने वाले को भी उस कसाई