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________________ ( e) अथ श्री मंद्रनो खामौरो सलन राग. हुई सुवै नौकस गये तारा मुज छाड चले बनजारा ॥ एदेशी० श्रीमंद्र स्याम तुमारा। मोय दरसण प्राण अधारा। एआंकडी खारथ सिंबंथकी चव आया ॥ सत्तका दे कूछे जायारे॥ श्रीयांश नृप सुखकारा ॥ मो० ॥१॥ सुर इन्दर मंगल गावे ॥ सुगभविजन मन हरखावैरे॥ महोत्सव के अत न पारा ॥ मो० ॥ २ ॥ नारी ककमणी परणी बहु शौल गुणे मन हरणोरे ॥ शशि सूर्य तेज मिलकारा । मो० ३ ॥ संसार सुख जाणि खारा ॥ प्रभु लोधो संयम भारारे ॥ प्रभु गुण कर ज्ञान भंडारा ॥ मो० ॥ ४॥ अतिसय च्यार नै तौसी ॥ बाणी भल पैंतीसोर ॥ जिम धन वर्षे जल धारा ॥ मो. ॥ ५ ॥ स्माटिक सिंहासण छाजे । प्रभु मेघ तणी पर गाजेरे ॥ पाखंडक पौलन
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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