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________________ (८८) किणरो जोर ॥ भव० ॥ १५ ॥ भ० पाप कर्म बहुला किया ॥ कर २ मनरो जोस । भ० बोले परमां धामों देवता ॥ किसी हमारो दोस ॥ भ० ॥ १६ ॥ भ० रंग गतो माती फिरतो॥ पर नास्यां रै संग। भ. अग्न बलती लोह पुतली ॥ चाढ़े तिण अंग ॥ भव० ॥१०॥ भ. खिण जौतक सुखरै कारणे ॥. सागर पलारी मार ॥ भ० बिन भुगत्यां छूट नहीं ॥ अरज करु बार बार । भव० ॥ १८॥ भ• क्रोधमान माया लोभमै ।। छकियो घोर अधाय ॥ भ० साथ श्रावक दोषै नहीं ॥ देतो धर्म अन्तराय ॥ भव० ॥ १६ ॥ भ० जीव हणे धर्म जाणनै । सेव्या कुगुरू. कुदेव ।। भ. निग्रन्थ गुरसेव्या महौं ॥ राखौ कुलको टेक ।। भ० ॥ २० ॥ भ० मूर्य गडैनै भूयो घणों ॥ लेयर पाइलो रात॥ भु
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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