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________________ ( ७० ) " खांम । कोई तमुपट सप्तमै राजैजी बिराजै पूज परम गुरु । देसमालवो नगर उजेगी तांम ॥ कोई कनईया लालके नंदोहो । मुख चंदाजेम पुरंदरु || १ || मात, जडावा ननम्यो सुत सुखकार । कोई सज्जन मन बिकसावे जौ । यशकायोनेम जिनंदनो ॥ कोई भविजन पेषत गणि तुम दौदार ॥ तनु लोम २ हुलसाजी | बरध्यावै ध्यान, गणि' दनो ॥२॥ हरीयरजिम अति गूं जैङालगणीं । कोई तब कौरत अतिभारीजौ | बिस्तारौ चिहुं तौर्थ मे मिथ्यातिन्न विध्वंस जेमदिनंद | भानू समक्रांतौथा रोजौ । जगनहारोईह भर्थमै ॥ ३ ॥ वाग्रत वांणौगणी अमीय समान । कोई जिम वर्षे सहश्राचजी तिमगगोपाखैवाण अपु वही । वंछित पूर्ण हरीचंद्र समजाय ॥ कोई मेरुतौ पर धौराहो । गंभौरा स्वयंभु रमयही ॥ ४ ॥ मधुकर मन चाहत मकरांद | I
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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