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(५८) तसप्तमपट अति सुन्दर | सादृसमांनुजेम पुरंदर । शिवछाजतुहै गणवास्तलकरना। लगरह्यो जियरोहमारो गणिवर्णा । वसरधो जीयरोहमारो गणिचरणा० ॥१॥ सरद ससाक बदनशिवसोहै। भविजन चन्दचकोर जुजोवै। वारौजावुनौसुरतियां है मनहरनां ॥ ल. ॥२॥ पांण अखंडन सांसण मङन ।। मिथ्याध्यांत हरणजं मारतंङन । तोरेदिदार निरखेसे शिवपदवरना ॥ ल०॥३॥ वेताषट् मतविवधयौनाणो रसभाषानां समयसुजाणी । तोगवाक्य श्रवणते मिटतभव फिरना । ल० ॥४॥ संवत उगणीसे पेंसठ मासे । तपाश्वत मुनि पाणहुलासे । सत्तामल तोरा लिया है सरणा ॥ ल०॥५॥ इति. __ अथ ढालः ७ सातौं राग० कहगया नांहि मुणग्या मनकी बात कोई म्हे लांको मेवासी० एदेसी० पंचम अर्के प्रगटे भौक्षु