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( ३१ ) है ज्यं केसर क्यारी ॥ ए. ॥ चुरु सहर पोश बंश नौको ॥ जात नाहेठा पधिक दीयता सारां शिरटीको म०॥ पिता सेवा रामजी सुखकारी॥ कानाजी री कुक्ष पान कर लौनो अवतारौ ॥ भ० ॥२॥ उगणीस एक संवत धारी ॥ जन्म भयो शुभ घड़ी नक्षत्र ॥ शुभ बेल्यां सारौ ॥ म० ॥ ३ ॥ मात पितु व्याह रचो भारी ॥ सुगनः मलजी बैद पति वर पायो सुबिचारी ॥ भ० ॥४॥ पूरब कृत कर्म उदै आई ॥ पति वियोगथयो शति मनमैं । वैराग्य हद लाई ॥ भ०॥ ॥ ५ ॥ जगत सुख जहर समां जाणौ ॥ उगपोसै बीसै दिक्षा लोधी ॥ संवेग चित पाणी ॥ भ० ॥६॥ शति मुख निरमल जिमचंदा॥ बीत गोंको सेवा सारी॥ तन मन हुल सन्दा ॥ भ० ॥ ७॥ जीत गणि परसनचित कौनो ॥ पतियां मांहे अधिक कायदो थारो