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॥ १० ॥ महा विदेह सम क्षेतर लाडं । ऐसा पुर्ष उद्धरावे ॥ धन्य घड़ी धन्य भाग्य नेहनो । खाम दर्शन नित पावै ॥ प्र० ॥ ॥ ११ ॥ कोड दीवाली तपो खामजी | एह अविलष करावै ॥ जोरावर प्रणिपत जर घांरा || हर्ष २ यश गावै ॥ ५० ॥ १२ ॥ संबत छासठ द्वितीया सावन सुद | चौध शक कहावै ॥ सभा वौच गुण वरणन करके । - "बार २ बलिजावै ॥ प्र० ॥ १३ ॥ इति० ।
अथ ढाल ८ आठमी राग हरिवसमें मेरी. सहयोए । आज म्हांरो लालन आवै लोए ॥ एदेशी • सहर ऊजेगी दौपती । जात पौपाडा सार | लाल कन्हयाको लाडली । जडांवां कूच उंजार ॥ म्हांरा ग्यानी गुरुजी वो थांरे । सुख साता अव थाव ज्यो || म्हारो मन हलसावे । म्हांरो तन बिकसावे म्हांरो उमग न मावै ॥ म्हांरा पुन बड़भागी
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