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________________ ७२ जैनघालवोधकविजय हो गई क्योंकि विजयार्द्धके इस तरफ पूर्वम्लेच्छ खंड पश्चिम म्लेच्छ खंड और वीचका आर्य खंड ये तीन खंडामाकारी हो गये इसी कारण इस पर्वतका नाम विजयार्द्ध पर्वत पड़ा है। अब इस विजयार्द्ध पर्वतमें सिंधु नदी जहांसे निकलती है वहां गुफा है उस गुफासे विजयार्द्ध के उत्तरतरफकेतीनम्लेच्छ खंडोंको जीतनेके लिये तैयारी की। प्रथम तौ चक्रवर्तीके चौदह रत्नोंमेंसे दंडरत्न लेकर सेना पतिने गुफाके द्वारको 'चक्रवर्तीकी जय' इस शब्दको वोलते हुये खोला। गुफामेंसे इतनी गर्मी निकली कि वह छह महीनेमें शांत हुई । इस गुफाका नाम तमिला है। इसकी ऊंचाई पाठ योजन और चौड़ाई वारह योजन की है इसके किवाड बज्रमई है इसको चक्रवर्तीके सेनापति सिवाय और कोई खोल ही नहि सकता । इस गुफाकी गर्मी निकले वाद चक्रवर्ती जानेको तैयार हुवा परंतु अंधकार होनेले कांकिणी और चूड़ामणि इन दोनों रत्नोंसे दोनों तरफकी दीवालोंपर चंद्र सूर्य के प्रतिविंद बनाये सो दिनमें सूर्यकी रोशनी और रात्रिमें चांदकी चांदनी सी हो गई । इस गुफामें सिंधु नदीके दोनों किनारों पर प्राधी२ सेना चलती रही। रास्तेमें दोनों दीवारोंसे दो नदिये श्राकर सिंधु में मिली हुई मिली । एकका नाम निमग्नजला और दुसरीका नाम उन्मग्नजला था । भरतने इन्ही नदियों पर डेरा डालकर सिलावट रत्नको इनपर पुल बनानेका हुकम दिया। पुल वनजाने पर सब सेना पार हुई और गुफासे निकलकर पश्चिम म्लेच्छ .... , खंडको तत्पश्चात् बीचके म्लेच्छ खेडको जीतकर पूर्वम्लेच्छखंड
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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